शिव रात्री

कहते हैं इस दिन शिव जी और माता पार्वति जी की विवाह की रात हैं।
अलग अलग कहानिओ में उनको अलग अलग तरीके से बताया गया हैं , कही पे उन्हें शारीरिक बताया गया हैं और कही पे उन्हें नर और मादा (शिव और शक्ति ) शक्तिओ के प्रतीक के रूप में माना गया हैं, अब सत्य क्या हैं, ये कौन बतायेगा ?

चलिए कोशिस करते एक एक पहलुओं को समझने की –
अगर मैं कहूं कि सृष्टि का मतलब होता हैं ब्रह्माण्ड , तो यह बिलकुल सही बात हैं, लेकिन फिर मैं आपसे कहूं सृष्टि मेरी 10 साल की बेटी का नाम भी हैं, तो वो बात भी सही ही हैं।

कहना ये चाहता हूँ कि एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, तो जब हम किसी चीज़ को जानने की कोशिस करे तब उसका पूर्ण ज्ञान अर्जन करने का प्रयाश करे नहीं तो हम कुछ गलत ही चीज़ समझ कर जीवन भर उसे ही मानते फिरेंगे न की जो सत्य हैं उसे।

जिस भी अवतार ने मानव शरीर में जन्म लिए हैं, चाहे वह कृष्ण हो, राधा हो, राम हो, सीता हो, वाहेगुरु हो, बुद्ध हो, येशु हो , पैगम्बर हो, साई बाबा हो, कोई भी हो , जिसने भी मानव शरीर में जन्म लिया उनका जन्म , माँ, बाप , बचपन , यौवन , प्रेम , विवाह , वृद्धावस्था , देहांत , सब होता हैं, जैसे प्रकृति के हरेक जीव का होता हैं।

पर शिव किसके पुत्र हैं , कब पैदा हुए , कहाँ हुए , बचपन, यौवन , वृद्धावस्था , देहांत ये सब कौन बताएगा ?
कभी किसी ने पूछा ही नहीं होगा।

शिव के बारे में हम सिर्फ इतना ही जानते हैं कि शिव कैलाश में रहते हैं , धयान करने की मुद्रा से उनको दर्शाया गया हैं , पारवती से उनका विवाह होता हैं , उस ववाह से दोनों को गणेश पुत्र के रूप में प्राप्तः होता हैं। समुद्र मंथन के समय उन्होंने विष को अपने कंठ में धारण कर लिए थे। क्रोध आये तो तांडव करते, पृथ्वी थर थर काप्ति इतना ही बस। बाकि उनके रूप की चर्चा होती हैं, उन्हें पार्वती के साथ बैठा दर्शाया गया हैं , माथें पे गंगा को धारण किये , चन्द्रमा मुकुट की भांति शुशोभित हैं, गले पे सर्प धारण किये हुए हैं। ऐसा उनका रूप दर्शाया गया हैं , जो की बहुत ही विचित्र , अद्भुत सी बात लगती हैं , कि ऐसा रूप तो और किसी भी अवतार राम, कृष्ण, किसी के भी नहीं हुए , ऐसा क्यों ?

कहना यह चाहता हूँ, क्या कोई भी मनुष्य के रूप में जिसने भी जन्म लिया क्या वह इतना विशाल हैं कि अपने माथे पे पुरे का पूरा चँद्रमा समां ले, गँगा उसी माथें से निकले ? किसी भी और अवतारों के साथ तो ऐसा नहीं हुआ, जिसने भी मानव शरीर में जन्म लिया। हैं न सोचने वाली बात ? तो सच क्या हैं ?

क्या शिव मानव के रूप में हैं या फिर शिव एक शक्ति का प्रतिक हैं , ये चर्चा का विषय हो सकता हैं , हैं न ?
बातो बातो में जिस दिशा में हम बढ़ रहे हैं उसमें शिव एक शक्ति के प्रतिक सा लग रहा हैं न कि कोई अवतार जैसे कि कृष्ण वगेरा जो मानव रूप में जन्म लिए थें।
क्यूंकि मानव शरीर के साथ चन्द्रमा , गंगा वगेरा सुशोभित नहीं हो सकता।

अगर इस बात को और अधिक समझाने की जरुरत पड़े तो त्रि – शक्तिया : ब्रह्मा , विष्णु , शिव , इन तीनो देवो के न तो जन्म का कोई पता हैं, न इनके माता पिता कौन हैं, ये किसी को पता , न इनके बचपन के बारे में कुछ भी पता किसी को, न यौवन के बारे में कुछ नहीं पता किसी को। विष्णु और ब्रह्मा का विवाह कब हुआ ये किसी को कुछ नहीं पता। और फिर इन तीनो देवो के वृद्धावस्था , देहांत वगेरा , जो की जीवन चक्र का आधार हैं, वही नहीं हुआ इनके साथ , तो क्या ये तीनो देव मानव रूप के अवतार हैं या फिर ये तीनो देव तीन अलग अलग शक्तिओ का प्रतिक हैं ?

मुझे लगता हैं , ये तीनो देव तीन अलग अलग शक्तिओ का प्रतीक हैं :
ब्रह्मा – एकदम वृद्ध सा दर्शाया गया और वृद्ध के ज्ञान अधिक होता हैं तथापि ब्रह्म प्रतीक हैं मष्तिष्क रूपी शक्ति का ( इंलिश में कहते माइंड ),
विष्णु – विष्णु का एक नाम नारायण भी हैं , और नारायण नर ( पुरुष ) या मानव शरीर रूपी शक्ति का प्रतीक हैं ( इंग्लिश में कहते बॉडी ),
शिव – शिव की पूजा शिव लिंग में जल और दूध चढ़ाकर की जाती हैं , शिव लिंग प्रतीक हैं शिव जी के लिंग और पारवती माता के योनि के मिलन का , यानि की नर और नारी के मिलन का, उस शक्ति का जिससे ये जीवन चक्र चलायमान हैं , इंलिश में कहते हैं लाइफ फ़ोर्स। ( शिव रूपी शक्ति को इंग्लिश में कहते सोल )

तो इंग्लिश में जो बॉडी , माइंड एंड सोल कहते हैं , उन शक्तिओ को हमारे सनातनियो ने ब्रह्मा , विष्णु , शिव कहकर पुकारे, पूजा किये। यानी ब्रह्मा, विष्णु और शिव कोई अवतार नहीं हैं जो मानव रूप में जन्म लिए हो, बल्कि वह प्रकृति द्वारा बनाये इस जिव जगत के तीन अलग अलग आधारभूत शक्तिया हैं, जिनके बगैर जीवन संभव नहीं।

तो इस तरह हम सब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीन अलग अलग शक्तियां हैं जीव जगत के , जिनके बगैर जीवन असंभव हैं। उन तीन शक्तिओ की पूजा करना हैं जिनके वजह से हमें यह जीवन मिली हैं। तो हमारे पूर्वजो ने उनकी पूजा किये इन रूपों में। इस तरह उनसे जुडी छोटी छोटी कहानिया बहार आयी जो की इन शक्तिओ के सन्दर्भ में बताई गयी ताकि इन शक्तिओ को थोड़े और बेहतर तरीके से समझा जाये।

जैसे विष्णु जो की प्रतीक हैं मानव शरीर रूपी शक्ति का (बॉडी का ) , उनका पत्नी लक्ष्मी जो की अन्न की देवी का प्रतीक हैं। अब बताईये क्या अन्न (भोजन ) के बगैर शरीर जीवित रह सकता भला ? नहीं। तो शरीर के जीवित रहने के लिए मनुष्य को अन्न (भोजन ) की जरुरत होती हैं जिनको हम लक्ष्मी माता के रूप में पूजा करते हैं, ये दोनों विष्णु और लक्ष्मी एक दूसरे के पूरक हैं , जैसे पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं। वक्त के साथ साथ लक्ष्मी का मतलब बदलते चले गए , मनुष्य एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम की तरफ बढ़ते चले गए , बार्टर सिस्टम कभी हुआ करता था, तब तक लक्ष्मी अन्न का ही प्रतीक रहा होगा, बाद में मनी सिस्टम आया और आज अन्न के लिए धन की आवश्यकता होती हैं इसलिए आज के लक्ष्मी के हाथो से धन की वर्षा होती दिखती। पर क्या हज़ारो साल पहले धन (पैसे ) होते थे ? नहीं , तो फिर क्या तभी उनको पता चल गया था , ऐसे कोई मनी सिस्टम आने वाला हैं ? नहीं। उन्होंने तो जब ये सिस्टम वगेरा शुरू नहीं हुई थी , तब जो जीवन के आधारभूत शक्तिआ हैं , उनकी पूजा करना, वो सिख चुके थें, जो हज़ारो वर्षो तक, एक युग से दूसरे युग होते हुए आज इस रूप में हमें दीखता हैं।

कहना यह चाहता हूँ कि विष्णु और लक्ष्मी का पति – पत्नी के रूप में, प्रकृति के बनाये उन दोनों आधारभूत शक्तियों ( शरीर और अन्न ) की पूजा करना हैं जिनके बगैर जीवन संभव नहीं हैं।

ठीक उसी प्रकार ब्रहम्मा ( मष्तिस्क ) के पत्नी सरस्वती माँ जो की ज्ञान की देवी यानि की ज्ञान की प्रतीक हैं वो हैं। मतलब ब्रह्मा (मष्तिस्क , माइंड ) और सरस्वती (ज्ञान ) एक दूसरे का पूरक हैं एक के बगैर दूसरा अधूरा हैं। तो आदि काल में सनातनी इन दोनों आधारभूत शक्तिओं की पूजा किये पति पत्नी के रूप में।

ध्यान देने वाली बात यह हैं की लक्ष्मी , सरस्वती और शक्ति का भी जन्म , माता , पिता , बाल्यावस्था , यौवनकाल , देहांत वगेरा का किसी को कुछ भी पता नहीं , तो उसका मतलब क्या हैं ? क्या वो मनुष्य रूप में देविया हैं या फिर वो भी जीवन के तीन अधारभूत शक्तिया हैं, जिनकी पूजा हमारे पूर्वज सनातनी करते थें। जैसे जैसे हम चर्चा अगे बढ़ाएंगे वैसे वैसे आपको सारी चीज़े और स्पस्ट होता चला जायेगा।

अब करते बात शिव और पारवती की। शिव और पारवती दोनों नर और नारी की सेक्सुअल एनर्जी के प्रतिक हैं, जिनके बगैर जीवन संभव ही नहीं। नर और नारी का मिलन से ही संतान का जन्म होता हैं , संतान के जन्म से जीवन चक्र चलता हैं। पारवती संतान को जन्म देती हैं और शिव उसका अंत (देहांत ) सबकुछ जन्म से पहले ही तै हो जाता हैं। सबकुछ मनुष्य के डीएनए में कोडेड हो जाता हैं उसके जन्म के भी पहले, की कैसे शरीर जन्म से बाल्यकाल, यौवन कल और वृद्धावस्था और फिर देह का अंत ये सब जीव के जन्म से पहले ही तै हो जाता हैं डीएनए में कोडेड होके इसलिए शिव को महाकाल भी कहते हैं।

तो शिव और पारवती नर और नारी दोनों शक्तिओ का प्रतिक हैं। दोनों शक्तिया एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं। इसलिए शिव को अर्धनारेश्वर रूप में भी दिखाया गया हैं। मतलब नर के बगैर नारी और नारी के बगैर नर अधूरा हैं , दोनों अपने लिंग और योनि के मिलन के जरिये एक होते जिससे दोनों के संतान का जन्म होता हैं। दोनों शक्तिओ के मिलन से जन्म और मृत्युं दोनों का निर्धारण भी इसी शक्ति के जरिये होता हैं , जन्म और मृत्यु दोनों के बगैर जीवन चक्र नहीं चल सकता।

शिव के माथे पे गंगा हैं , इसका अभिप्राय हैं जीवन का शुरुआत जल से ही हुआ हैं, समुद्र के भीतर लाखो लाखो वर्ष पहले छोटे से बैक्टीरिया के रूप में हुई , जो कि समस्त जिव जगत के जीवो का शुरआत था। वो पहला बैक्टीरिया एक कोशिका (सिंगल सेल )का था , मतलब वो अकेले ही पूर्ण था, तब जन्म के लिए नर और मादा शक्तिओ तक का जन्म नहीं हुआ था इसलिए शिव को आदियोगी भी कहा गया हैं। शिव के जीवन में पारवती का आना , उनका विवाह बहुत बाद में हुआ जो प्रतिक हैं नर और मादा शक्तिओ के जन्म का जो आगे चलकर जीवन का आधार बना, और यह सब समुद्र के भीतर जीवन चक्र चलते चलते हो चूका था बाद में
समुद्र से बाहर धरती पे आया, पर यहाँ भी माँ के पेट में जीव का शरीर पहले जल में ही तैयार होता हैं फिर माँ के गर्व में से बाहर धरती पे उनका जन्म होता वो सांसे लेना शुरू करता हैं। आज हरेक जिव नर और मादा शक्तिओ के मिलन से ही पैदा होता हैं चाहे वह जल में रहता हो, धरती पे रहता हो या फिर वायुं में उड़ने वाले पक्षी ही क्यों न हो सबका जन्म नर और मादा शक्तिओ के मिलान से होता हैं।

शिव के माथे पर चन्द्रमा , प्रतिक हैं की आदियोगी (शिव) (पहला जीव ) स्वयं में पूर्ण था , जो जल (गंगा ) और चन्द्रमा के प्रभाव से बानी थी समुद्र में। बाद में जैसे जैसे जीवन चक्र चलता गया , जीवो को जन्म होता गया, शिव के माथे का चण्द्रमा का अर्थ भी बदलता गया , जिसका अभिप्राय यह हुआ की चन्द्रमा का जीवन दायिनी जल को नियंत्रण करना भी हैं, जिस तरह चन्द्रमा प्रत्येक जलाशयों के जल को नियंत्रित करता हैं। इशलिये शिव की पूजा करने का मतलब हैं इतनी सारी शक्तिओ की पूजा करना , जो आदि काल से ही हमारे पूर्वज सनातनी समझ गए थें और उन सभी शक्तिओ की इस तरह से पूजा करने लगे। साथ साथ नर और मादा शक्तिओ का मिलन को जितनी सचाई से करेंगे दोनों , तो दोनों मिलकर जो शक्ति की उतपत्ति करेंगे मानो वह गंगा के सामान शीतल (शांत), पवित्र , चन्द्रमा सी उज्जवल उस शक्ति की उत्पत्ति कर सकते जिसको जीव महसूस करके अनंत ( इंफिनिटी, शुन्य ,आकाश ) की भी अनुभूति कर सकता हैं मतलब वह अनंत के समान शक्तिशाली हो जाता हैं या फिर यूँ कहे की अनंत की शक्तिओ को महसूस कर पाता हैं , इसलिए शिव के ही मथें पर गंगा और चन्द्रमा शुशोभित दिखाया गया हैं जो इन शक्तिओ के प्रतीक हैं।

तो शिव की पूजा करने का मतलब इतना सारा अर्थ होता हैं जिनके बारे में कोई आज के इस युग में जनता ही नहीं हैं। क्यूंकि आज हमें कोई उस युग की बाते बताने वाला हैं ही नहीं, जिसने जो इस युग से सीखा वही बता पाया, जो की पूर्णतया सत्य नहीं हैं।

तो सोचिये जब मनुष्य इन शक्तिओ को सच में समझकर उनकी पूजा करेगा , तो उस वक़्त जीव जगत का आलम क्या होगा ? मुझे लगता हैं की हम सब, वापस उस रॉ एनर्जी की तरफ अग्रसर होंगे , जो हमने वक़्त के साथ साथ खो दिए थें। और जब हमें उन शक्तिओ के तरफ जाग्रत रूप से बढ़ेंगे तो शक्तिया भी वापस अपनी शक्तिया पा रहे होंगे , क्यूंकि हम उनसे हैं, पर जब हम उनके सही रूप में होंगे , सही ज्ञान सिख चुके होंगे तो हम उन शक्तिओ को वापस मजबूत करने लगेंगे , क्यूंकि इंग्लिस में कहते हैं न आयी वाटर यू , यू वाटर मी। हम उनसे हैं और हमसे वो हैं।

तो इस तरह हम इन शक्तिओ के बारे में सीखें , की ये शक्तिया क्या हैं जिनकी पूजा की जाती थी पर वक़्त के साथ साथ युग बदलता गया , लोग उनमें कुछ कुछ बदलाव जोड़ते चले गए, इन शक्तिओ के साथ छोटी छोटी कहानिया बनाते गए , जिनको पुस्तकों में या टीवी सिरिअल्स में दिखाते गए और हमने उन शक्तिओ को मानव रूप में पूजा करने लगे। जैसे वर्षा को इंद्र देव के नाम से पूजा की गयी, हवा को वायु देव , सूर्य को सूर्य देव इत्यादि नामो से मनुस्य के रूप में दिखाया गया और उनसे कुछ कुछ कहानिया बनाकर जोड़ दिया गया , आज हम इन शक्तिओ को मनुस्य रूप में पूजा करते हैं, इनपे बनी कहानिओ को बिश्वाश करते हैं , पर इतना सब कुछ कहने के बाद में चाहता हूँ आप निर्णय करे कि इन देवताओं का पूजा करने का अलसी अर्थ क्या हो सकता हैं ? और जो आपका हृदय कहे उसके मुताबिक आप उसे स्वीकारे।

जहा तक मेरा सवाल हैं , मैंने आपको अनेको तरह से समझाने का प्रयास किया हैं , कि ये कैसी शक्तिया हैं जिनको हमारे पूर्वज सनातनी पूजा करते थें।
अगर आप भी संतुस्ट हैं मेरे बातो से , तो हम अगे बढ़ते हैं , और शिव रात्रि के इस पवन घडी में शिव की पूजा कैसे करते और उसका क्या अर्थ हैं इन बातो को भी समझने का प्रयास करते हैं।

विधि यह हैं कि शिव रात्रि के दिन स्त्रिया उपवास करती हैं , शाम को शिव लिंग पे जल या दूध चढाती हैं , शिव के मूर्ति को पूजती हैं और अंत में प्रशाद ग्रहण करके पूजा ख़त्म करती हैं। आजकल कई पुरुष भी उपवास करके शिव लिंग पे जल या दूध चढ़ाते हैं , शिव की पूजा करते हैं पर क्या इसे पूरी जानकारी के साथ और सच्ची विधि के साथ करना उत्तम होगा या फिर अधूरे ज्ञान के साथ ? तो अब मैं कोशिस करूँगा आपको सच्ची विधि और इसके माईने बताऊँ।

सबसे पहले शिव लिंग पे सिर्फ दूध या जल ही चढ़ाये। कोई भोग वगेरा न लगाए। क्यूंकि शिव लिंग प्रतीक हैं नर और मादा शक्तिओ के एक होने का, जब वो एक होते तो नर के लिंग से दूध सा दिखने वाला वीर्य निकलता हैं और मादा के योनि से जल सा दिखने वाला द्रव्य (जीवन रूपी अंडे) निकलता हैं, तो जो शिव लिंग, शिव का लिंग और पारवती जी की योनि (नर और मादा शक्ति ) के मिलन का प्रतिक हैं उसपे नर दूध चढ़ाये , और मादा जल चढ़ाकर पूजा करे। जो की नर का वीर्य और मादा के द्रव्य के मिलन का प्रतिक हैं एक लिंग योनि की सिंबॉलिक मूर्ति के जरिये।

इस तरह शिव लिंग की पूजा करने से नर और नारी को एक दूसरे के जनन अंगो के प्रति इज़्ज़त बढ़ेगी , आजकल सिर्फ नारी शिव लिंग की पूजा करती हैं और वह कभी नर के जनन अंगो के साथ गलत नहीं करती, क्यूंकि वो एनर्जी क्रिएट की गयि हैं , तो जब हम नर को भी शिव लिंग की पूजा करना सिखाएंगे उनको इसका सही मीनिंग सिखाएंगे तब पुरुष स्त्री के जनन अंगो की इज़्ज़त करना सीखेंगे, जिससे की रेप जैसे जघन्य अपराध उसके बाद जो स्त्री के जनन अंगो में राक्षस की भांति लोहे से प्रहार करना या चोट पहुंचना ये सब गुनाह ख़त्म य कम हो सकती हैं।

तो हमारे पुरुषो को बालको को उतना ही जागरूक करना होगा, उनको इस पूजा के महत्तम सिखाना होगा तब जाकर हम एक खूबसूरत सा दुनिआ फिर से बसा सकते हैं जहा स्त्रीओ का सम्मान किया जायेगा, दोनों नर और मादा एक दूसरे के पूरक के रूप में जीवन चक्र को साथ मिलकर आगे बढ़ाएंगे।

इसके साथ साथ जो स्त्री और पुरुष विवाहित हैं वो शिव रात्रि को उपवास करके शिव लिंग पे दूध और जल चढ़ाकर पूजा करके उस शक्ति को प्रणाम करे जिससे उन्हें वो सुख मिलता हैं , जिसके लिए हर नर और नारी पागलो की तरह चाहत रखता हैं। तो उस सुख को नमन करे , पूजा करे जो उन्हें इतना अच्छा लगता हैं। उसके बाद शिव और पारवती के मूर्ति की पूजा करे जिससे की इतने सारे आधारभूत शक्तिओ को मनुष्य पूजा करे जिनके बगैर जीवन चक्र चल ही नहीं सकता।

तो इस तरह शिव रात्रि के दिन हम जागरूक रूप में शिव , पारवती , और इतने सारे और शक्तिओ को नमन करते हैं , पूजा करते हैं जहा से जिव जगत का शुरुआत हुआ और अबतक के जीवन चक्र जिससे हमारा अस्तित्व हैं उन सभी शक्तिओ को नमन करते हैं और पूजा करते हैं। मतलब यह जीवन को सेलिब्रेट करने का भी पर्व कह सकते हैं , इसलिए छोटे, बड़े , बूढें , स्त्री , पुरुष सभी को इस एक दिन साथ मिलकर जीवन रूपी इन सभी शक्तिओ की पूजा करनी चाहिए , उसे सम्मान देनी चाहिए , उसे धन्यवाद कहना चाहिए।
ॐ नमः शिवाय।

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